Sunday, 3 February 2013

MAYUSI

हमने खेतों को लहलहाते देखा ,
नदियों को कलकल , छलछल बहते ,
आसमान को नीला देखा ,
मेहनतकशों के चेहरों पर संतोष का पसीना ,
और न जाने कितने  चिड़ियों की चहचहाहट सुनी ।
पर ए अधर्मी पापी मनुष्य, तुम कहाँ से आए ?
जिसने सिर्फ
सिकन,  मायूसी और असंतोष देखा ,
खेतों को बंजर देखा ,
आसमान को काला देखा ,
पसीने वालों को जमीन पर रेंगते देखा ,
और चिड़ियों को आसमान में उड़ते वक़्त ,
बंद पिंजरों में देखा ।

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