Wednesday, 6 February 2013

TU HI ACCHI HAI.

हर इक शमां को रंगीन बना तू रूठ जाता है ,
हर नाता है जो मुझसे वो तेरा क्यों टूट जाता है ।
न रुकता हूँ ,न झुकता हूँ बस आगे ही बढ़ता  हूँ ,
समंदर पार पाने को तेरी मैं राह तकता  हूँ ।
तेरी हर बात अच्छी है ,तेरी हर राग अच्छी है ,
तुझसे मेरी हरेक मुलाकात अच्छी है ।
गर तू न होती तो कैसे बयां करता ,
की मेरे दिल में दबी हरेक जज्बात अच्छी है।
किले के मुनेरों पर चढ़ मैं चीख यह कहता ,
की तेरे नस्ल की हरेक ज़ात  अच्छी है ।
गर हो भी जाये तू बेनाम दुनिया से ,
ज़न्नत की किताबों में तू गुमनाम अच्छी है ।
कलम की चोट पर कहता ,किताबों की सजावट से ,
जमाना झूम कर चलता इतिहासों की इबादत से ।
सच्ची भक्ति है मेरी तेरे ही चढ़ावों से ,
समर्पण प्राण करता हूँ तेरे ही रिवाजों से ।
तमन्ना है की तुझको मैं  हर मोड़ पर पाऊँ ,
शब्दों की कसौटी पर तेरा झंडा लहराऊं ।
गुलिस्तां है ये रौशन तो गुल तू ही सच्ची है ,
हिंदुस्तान के धरती पर हिंदी तू ही अच्छी है ।

No comments:

Post a Comment