Sunday, 3 February 2013

DOOR NA JAO

मन बावला कुछ करना चाहता है ,
तन अलसाया कुछ कर नहीं पता है ।
भटकती राहों में गुमनाम सपनो के संग ,
अंधेरी मंजिल को पाना चाहता है ।
होश में लाऊं पर जल्दी क्या है ,
ख्वाईशें पूरी नहीं होती ,बिखराव जो इतना है ।
ठहरूं कहाँ पर कोई तो बताये ,
अनजान मंजिल तक कोई तो पहुंचाए ,
एक साथी चाहता हूँ ।
पर मौन है वो ,ना जाने कौन है वो ?
सामने तो आओ ,मुझमें समाओ ,
प्रेम पिपासित मेरा मन ,
कब से तुम्हारी राह  तक रहा है ।
आओ -आओ दूर न जाओ ,आओ -आओ दूर न जाओ ।
                          

No comments:

Post a Comment