हमारे दोस्तों ने मुझसे कहा इतनी बड़ी त्रासदी उत्तराखंड में आ गयी और तुमने इस पर कुछ नहीं लिखा । तो आज मैंने तय किया की लिखूं डिजास्टर पर ।बात यह है की डिजास्टर को लेकर मैं दुविधा में हूँ । इंसान ,प्रकृति के लिए नुकसानदेह है या प्रकृति इंसान के लिए ।तो मैं इस दुविधा से निकलता हूँ और ये मानता हूँ की प्रकृति ,इंसान के लिए एक बहुत बड़ी डिजास्टर है और इसका सफाया जल्द से जल्द होना चाहिए । तो इसके लिए हमें विकास नामक हथियार का बखूबी इस्तमाल करना होगा ।
अभी तक तो हम इसमें काफी हद तक सफल हुए हैं । पर हमें प्रकृति के समूल सफाये के लिए और मेहनत करनी होगी । सबसे पहले हमें निचले स्तर से विकास के लिए काम करना होगा । प्रकृति को जन्म देने वाली मृदा को हमें सबसे पहले प्रदूषित करना होगा । रसायन और खादों के छिड़काव बड़े पैमाने पर लागू कर दो । किसानों को सब्सिडी मुहैय्या कराओ और जो किसान हमारे दुश्मन से मिले हैं उनका लोन रुकवाओ ताकि वो आत्महत्या कर लें । दूसरी चीज जो इस प्रकृति की दोस्त बन बैठी है वो है "पानी "। इसे भी करो प्रदूषित ताकि इसमें रहने वाले सारे जीव जहरीले पानी से मर जायें । बहा दो सारे के सारे औद्योगिक कचड़े को इसमें ताकि पानी सांस भी ना ले सके और अपना दम तोड़ दे । तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है इनके लिए वो है "हवा" । इनके बिना तो ये प्रकृति और पेड़-पौधे तो एक क्षण भी नहीं जी पायेंगे । तो इसके लिए हमें एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार करना होगा । सारे विश्व के लोगों को एक जुट होकर विकास की दशा-दिशा को तेज़ करना पड़ेगा । हमें ज्यादा से ज्यादा उद्योग लगाना होगा ,अंधाधुंध वनों की कटाई करनी पड़ेगी ,सड़कों पर बड़े पैमाने पर गाड़ियों को रेंगना होगा । ताकि इनसे निकलने वाले धूएँ वायु को इतनी जहरीली बना दे ताकि ये प्रकृति जिसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझ रही थी वही सबसे बड़ा दुश्मन बन जाये और इस प्रकृति का वजूद नष्ट हो जाये ।
पर हम इंसानों के अस्तित्व के लिए सबसे खतरनाक हम खुद इंसान ही हैं क्योंकि कुछ हमारे दुश्मन से हांथ मिला जा बैठें हैं और उनका मानना है की प्रकृति ही हमें रचने वाली है और दिन-रात वो हमारे दुश्मन का गुणगान करते रहते हैं । हमें इस तरह के दुश्मन से सबसे ज्यादा सतर्क रहना होगा । रात को सोते समय उनके खून में विकास का फार्मूला इंजेक्ट करना होगा । इससे वो अपने असली रूप में आ जायेंगे और हम मानव-जाति अपने सबसे बड़े डिजास्टर इस "प्रकृति " का समूल नाश कर चुके होंगे और इसका जश्न हम ब्रह्मांड के दूसरे ग्रह पर मना रहे होंगे ।
अभी तक तो हम इसमें काफी हद तक सफल हुए हैं । पर हमें प्रकृति के समूल सफाये के लिए और मेहनत करनी होगी । सबसे पहले हमें निचले स्तर से विकास के लिए काम करना होगा । प्रकृति को जन्म देने वाली मृदा को हमें सबसे पहले प्रदूषित करना होगा । रसायन और खादों के छिड़काव बड़े पैमाने पर लागू कर दो । किसानों को सब्सिडी मुहैय्या कराओ और जो किसान हमारे दुश्मन से मिले हैं उनका लोन रुकवाओ ताकि वो आत्महत्या कर लें । दूसरी चीज जो इस प्रकृति की दोस्त बन बैठी है वो है "पानी "। इसे भी करो प्रदूषित ताकि इसमें रहने वाले सारे जीव जहरीले पानी से मर जायें । बहा दो सारे के सारे औद्योगिक कचड़े को इसमें ताकि पानी सांस भी ना ले सके और अपना दम तोड़ दे । तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज है इनके लिए वो है "हवा" । इनके बिना तो ये प्रकृति और पेड़-पौधे तो एक क्षण भी नहीं जी पायेंगे । तो इसके लिए हमें एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार करना होगा । सारे विश्व के लोगों को एक जुट होकर विकास की दशा-दिशा को तेज़ करना पड़ेगा । हमें ज्यादा से ज्यादा उद्योग लगाना होगा ,अंधाधुंध वनों की कटाई करनी पड़ेगी ,सड़कों पर बड़े पैमाने पर गाड़ियों को रेंगना होगा । ताकि इनसे निकलने वाले धूएँ वायु को इतनी जहरीली बना दे ताकि ये प्रकृति जिसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझ रही थी वही सबसे बड़ा दुश्मन बन जाये और इस प्रकृति का वजूद नष्ट हो जाये ।
पर हम इंसानों के अस्तित्व के लिए सबसे खतरनाक हम खुद इंसान ही हैं क्योंकि कुछ हमारे दुश्मन से हांथ मिला जा बैठें हैं और उनका मानना है की प्रकृति ही हमें रचने वाली है और दिन-रात वो हमारे दुश्मन का गुणगान करते रहते हैं । हमें इस तरह के दुश्मन से सबसे ज्यादा सतर्क रहना होगा । रात को सोते समय उनके खून में विकास का फार्मूला इंजेक्ट करना होगा । इससे वो अपने असली रूप में आ जायेंगे और हम मानव-जाति अपने सबसे बड़े डिजास्टर इस "प्रकृति " का समूल नाश कर चुके होंगे और इसका जश्न हम ब्रह्मांड के दूसरे ग्रह पर मना रहे होंगे ।