Monday, 4 November 2013

TERI TASVEER KO FIR SE MAINE DEKHA THA.

तेरी तस्वीर को फिर से मैंने देखा था ,
ज़ुल्फ़ों के बिखराव को ,
तेरे हंसी के बेबाकपन को ,
चेहरे की मासूमियत को ,
तेरे आँखों की नशीली फरियाद को ।
मर ही तो गया था मैं ,
खुदा कि कारीगरी की सबसे खुबसूरत चाँद पर ।
पर अचानक तुझसे मिलने का ख्याल आया ,
सोचा तेरी यादों में मरने से अच्छा है ,
तेरी सांसों में जीयूं ,तेरी सांसों में मरुँ ।
तेरी ज़ुल्फ़ों से खेलूं ,तेरी हंसी से कुछ हंस कर बोलूं ,
तेरी आँखों कि नशीली फरियाद को मैं मरते दम तक न भूलूँ ।
इसलिए तो मैंने तेरी तस्वीर फिर से देखा था ,
फर्क बस इतना था कि वो मेरे अब दिल में उतर आये  थे । 

TRISHNA

दिल की गहराई मैं डूबी थी दो चार बातें,
सामने वो आयी हौले से मुस्कुरायी,
कहा कैसे हो ?
कोई मिली या डूबे हुए हो किसी कुमारी के ख्यालों में,
जो तुम्हें समझे और तुम उसे,
जज्बातों के ढेर में उलझे हुए,उस पटना की लड़की के ख्याल में,
जिसकी अब शादी हो गयी.
या फिर ताक रहे हो कि कोई मिल जाए उस सड़क के किनारे,
जो दे सके तुम्हारी नज़रों का जवाब अपनी झुकती नज़रों से,
या फिर बौखलाए हुए हो, की चंद लफ्ज़ किसी को बता पाऊं,
अपने दिल की जबानी से.
मैं सामने बैठी हूँ, फर्क बस इतना है,
की तुम अब भी ताक रहे हो सड़क के उस पार,
उस तृष्णा की चाह लिए,
बैठे हो गुमसुम,
धडकनों का गुबार लिए, कचोटती साँसों का हाहाकार लिए!1

PADHAI

और भाई सब कुछ ठीक है ,
या फिर डूबे हुए हो सलमा ,सुषमा के ख्याल में ,
माँ बाप के सपनों के गला रेत प्रतियोगिता में फिर से अव्वल आये हो ,
जो दोस्तों को शराब ,कबाब खिलाये जा रहे थे ?
क्या कहा इन छोटी- मोटी चीजों से तुम्हारा कोई सरोकार नहीं है ,
ओ ,तुम तो लम्बी कश पर कश लगाने वाले सुट्टेबाज हो|
हाँ ,वो तो है ही पर जब तक एक शाम डिस्को में हो-हो हनी सिंह पर नांच नहीं लेते तो मन नहीं लगता
हो -हो हनी सिंह ?
आप नहीं समझिये गा ,ये अपना देसी वर्जन है |
और किस -किस चीज की लत पाल बैठे हो इस जवानी में ,
जी बस कुंवारी कन्याओं को तारने का शौंक है ,
लड़की हंसी तो फंसी |
मतलब बहुत बड़े लफुए हो ,
जी लफुआ ?
भई कुछ नहीं लड़की पटाने वाले फील्ड में सचिन तेंदुलकर को लफुआ कहते हैं|
आप भी न झूठ -मूठ की तारीफ करते हैं ,
क्या करें मुफ्त में तारीफ करने की आदत सी हो गयी है |
कैसे पटाते हो लड़की ?
जी शायरी करते हैं ,
"तेरे हुस्न का हुक्का बुझ गया ,
एक हम हैं की गुरगुराये जाते हैं",
वाह तुम तो ग़ालिब को भी पछाड़ दिए |
पढाई -लिखाई करते हो ?
पढाई -लिखाई तो मूर्खों का काम है , हम तो विद्वान हैं ,
ठांस के बियर पीते हैं और कुम्भकरण की तरह सोते हैं |
बीडी पीजिएगा? रिक्सावाला से मांग कर लाये हैं,
वैसे आप क्या करते हैं?
अरे कुछ नहीं,तुम नहीं समझोगे |
बताइए ना.....
वही मूर्खों वाला काम "पढाई"|
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