Thursday, 21 February 2013

MOHALLE KA PYAR

मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
सुबह हुई आंखें चार ,शाम को हुआ इकरार ,
शुरु हुई ताका - ताकि ,
और न ख़त्म होने वाला इंतज़ार ,
हुई फिल्मों की फंतासी चालू ,
शाहरुख़ बना मैं ,काजल की है दरकार ,
मिल जाने पर आपको भी खुश कर देंगे सरकार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
आपा -धापी में एक लड़की पसंद आयी ,
आंखें लड़ी ,बातें बढ़ी ।
फिर क्या था
कल से सोसाइटी में अपनी इज्ज़त बढ़ी ।
शुरु हुआ ख्वाबों का सिलसिला ,
चाँद तारों को तोड़ने की बातें ,
और कभी न जुदा होने की कसमें खाते ,
वो मेरी सोना और मैं  उसका यार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
समस्या खड़ी हुई घर में ,
नालायक नाक कटा देगा शहर में ,
हुई मेरी बाप से तकरार ,
और न चाहता हुए भी करना पड़ा
घर का बहिष्कार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
कहते हैं जब पेट नहीं पलता
तब दिल नहीं दिमाग है चलता ।
आ गया हूँ लौटकर ,माँ मुझे माफ़ करो ,
खाना दो गरम -गरम ,आ गयी मुझको शरम ,
बिछा दो ज़रा चारपाई ,दबा दो मेरा पैर ,
और पापा से कह देना वो करे न मुझसे बैर ,
उनका है मुझ पर पूरा अधिकार ,
गलती करूं तो लगा दें दो -चार फटकार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
शायद  सुधर चूका था मैं
माँ -पापा भी खुश थे ,
फिर एक दिन फोन की घंटी बजी ,
आवाज आयी जानू ,फिर मैं मानू  या ना मानू ,
अब मुझको है बस उसका ऐतबार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार ।
भाग रहा था लड़की को लेकर ,
पर पकड़ा गया बीच सड़क पर ,
शुरु हुई गाली -गलोज ,मार - पिटाई ,
फ़ोन हुआ पुलिस की गाड़ी आयी ।
किडनैपिंग का हुआ केस दर्ज ,
प्यार बन गया मेरे लिए बस एक मर्ज ।
दुनिया की हर सजा का मैं हक़दार ,
माँ और पापा का मैं गुनेहगार ,
काटती है मुझे इस जेल की दीवार ,
अब भी कहता हूँ
वो मेरी सोना और मैं उसका यार ,
मोहल्ले का प्यार ,न जाने कितने बीमार । 

Wednesday, 6 February 2013

TU HI ACCHI HAI.

हर इक शमां को रंगीन बना तू रूठ जाता है ,
हर नाता है जो मुझसे वो तेरा क्यों टूट जाता है ।
न रुकता हूँ ,न झुकता हूँ बस आगे ही बढ़ता  हूँ ,
समंदर पार पाने को तेरी मैं राह तकता  हूँ ।
तेरी हर बात अच्छी है ,तेरी हर राग अच्छी है ,
तुझसे मेरी हरेक मुलाकात अच्छी है ।
गर तू न होती तो कैसे बयां करता ,
की मेरे दिल में दबी हरेक जज्बात अच्छी है।
किले के मुनेरों पर चढ़ मैं चीख यह कहता ,
की तेरे नस्ल की हरेक ज़ात  अच्छी है ।
गर हो भी जाये तू बेनाम दुनिया से ,
ज़न्नत की किताबों में तू गुमनाम अच्छी है ।
कलम की चोट पर कहता ,किताबों की सजावट से ,
जमाना झूम कर चलता इतिहासों की इबादत से ।
सच्ची भक्ति है मेरी तेरे ही चढ़ावों से ,
समर्पण प्राण करता हूँ तेरे ही रिवाजों से ।
तमन्ना है की तुझको मैं  हर मोड़ पर पाऊँ ,
शब्दों की कसौटी पर तेरा झंडा लहराऊं ।
गुलिस्तां है ये रौशन तो गुल तू ही सच्ची है ,
हिंदुस्तान के धरती पर हिंदी तू ही अच्छी है ।

Sunday, 3 February 2013

MAYUSI

हमने खेतों को लहलहाते देखा ,
नदियों को कलकल , छलछल बहते ,
आसमान को नीला देखा ,
मेहनतकशों के चेहरों पर संतोष का पसीना ,
और न जाने कितने  चिड़ियों की चहचहाहट सुनी ।
पर ए अधर्मी पापी मनुष्य, तुम कहाँ से आए ?
जिसने सिर्फ
सिकन,  मायूसी और असंतोष देखा ,
खेतों को बंजर देखा ,
आसमान को काला देखा ,
पसीने वालों को जमीन पर रेंगते देखा ,
और चिड़ियों को आसमान में उड़ते वक़्त ,
बंद पिंजरों में देखा ।

DOOR NA JAO

मन बावला कुछ करना चाहता है ,
तन अलसाया कुछ कर नहीं पता है ।
भटकती राहों में गुमनाम सपनो के संग ,
अंधेरी मंजिल को पाना चाहता है ।
होश में लाऊं पर जल्दी क्या है ,
ख्वाईशें पूरी नहीं होती ,बिखराव जो इतना है ।
ठहरूं कहाँ पर कोई तो बताये ,
अनजान मंजिल तक कोई तो पहुंचाए ,
एक साथी चाहता हूँ ।
पर मौन है वो ,ना जाने कौन है वो ?
सामने तो आओ ,मुझमें समाओ ,
प्रेम पिपासित मेरा मन ,
कब से तुम्हारी राह  तक रहा है ।
आओ -आओ दूर न जाओ ,आओ -आओ दूर न जाओ ।
                          

CHITRA

चरित्र  की  चित्रा  में  हर  चित्र  को  तोलता हूँ ,
मेरी  क्या  मजाल  जो  किसी से  बोलता  हूँ ,
चुप हूँ , खामोश हूँ , मौन  हूँ  तुम्हारे  लिए ,
इस  बात  से अनजान तुम , यूँ ही  इतराये  हुए ,
तुम्हे  मैं  महसूस  करता  तुम्हारे  इक  नाम से,
चरित्र  की  चित्रा  में  तुम  इसे  दफनाये  हुए ।
बेगैरत  था  जो  मैंने  तुम्हे दिल  से लगाया ,
मुझे क्या पता था  तूने  मुझे  हर  मोड़  पर  जलाया ,
तेरे  इक  नाम से  मुझे  अब  डर  लगता  है ,
चरित्र  की  चित्रा  का  ना  जाने  हर  चित्र ,
क्यूँ  दाग-दाग  सा  लगता  है ..............।